सादर – समर्पण
जिस – महापुरुष ने सत्य की खोज, सतत् -साधना, सार्वजनीन – सेवा तथा बहुमुखी – विद्वत्ता द्वारा अज्ञान तिमिरान्धजीवों के ज्ञान लोचन उन्मीलितकर, लोकोत्तर उपकार किया है- तथा जिनकी सहज वाणी ने सर्व-साधारणोपयोगी अनुपम रामायण रचने की प्रेरणा की थी, उनही— गुरुदेव श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी के कर-कमलों में अपनी इस सामान्य रचना को सादर समर्पित करने में, अपना सौभाग्य समझता हूं ।
उपरोक्त गुरुदेव का चिर-ऋणी
– शिष्य ब्र. कस्तूरचन्द्र नायक