प्रस्तावना
प्रभु राम के कार्य के लिये उनके भक्त अपने आप जुड़ जाते हैं, चाहे वह एक-दूसरे से अपरिचित ही क्यों न हो। यही मेरे एवं डॉ. मंगल नायक (सरल जैन रामायण के रचियता श्री कस्तूरचंद्र जी नायक के सुपुत्र) के साथ हुआ।
हम दोनों ग्रीष्मकालीन प्रवास पर दिगम्बर जैन श्रमणाचार्य 108 श्री विषुद्ध सागर जी महाराज के चरण कमलों में जबलपुर के दिगम्बर जैन आदिनाथ जिनालय मालवीय चौंक के प्रांगण में बैठे हुये आचार्य श्री के प्रवचन की प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक हम दोनो में वार्तालाप हुआ और जैन रामायण पर चर्चा आ गई। मेरे मुख से यह निकला कि डॉ. साहब आपके स्व. पिताश्री द्वारा रचित सरल जैन रामायण अदभुत ग्रन्थ है। सुनकर वह आष्चर्य चकित होकर बोले कि मुझे यह कैसे ज्ञात है? मैने कहा-कि मैं और मेरे पिताजी इस ग्रन्थ का स्वाध्याय कई वर्षों से करते आ रहे हैं।
महाकौषल एवं बुंदेलखण्ड की मिश्रित भाषा में रचित इस रामायण के कवित्त बड़े सुंदर हैं। मूल जैन ग्रन्थ ‘पद्म पुराण’ के आधार पर इसे लिखा गया है। यह सुनकर डॉ. मंगल नायक अति प्रसन्न हुये, और उन्होने मुझसे अगले दिन ग्रन्थ के चारों भाग लाने को कहा। अगले दिन मैं अपने पिताश्री बाबूलाल जी जैन के साथ ग्रन्थ सहित प्रस्तुत हुआ, तो डॉ. साहब खुषी से फूले न समाये और हमें आचार्य श्री के समीप आषीर्वाद हेतु ले गए और उनके समक्ष ग्रन्थ प्रस्तुत करते हुये कहा- ‘‘कि ये ग्रन्थ उनके स्व. पिताजी ने जबलपुर में ही लालटेन की रोषनी में लिखा है।’’
आचार्य श्री ग्रन्थ को देखकर प्रसन्न हुये और उन्होने डॉ. साहब को इस ग्रन्थ के पुनः प्रकाषन हेतु आषीर्वाद दिया। यह भी कहा- ‘‘कि यह ग्रन्थ अब जैन समाज की धरोहर है और इस तरह की एक मात्र रचना की रक्षा और प्रचार-प्रसार होना चाहिये।’’ डॉ. साहब मुझे अपने घर ले गये और अपने परिवारजनों से मेरा परिचय करवाया। सब इस ग्रन्थ के चारों भागों को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुये। मुझे यह ज्ञात नहीं था कि इस ग्रन्थ के कुछ भाग अप्राप्य हो गए थे और पूर्ण ग्रन्थ के सभी भागों को डॉ0 साहब कुछ समय से ढूंढ़ रहे थे।
डॉ. साहब की बहुरानी डॉ. स्वराज नायक इसके पुर्नप्रकाषन में अत्यन्त रूचि ले रही थीं। वह यह भी चाहती थी कि इस ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण जिसमे पूर्ण रामकथा समाहित हो जाये, उसका भी प्रकाषन हो। इस विषय में मुझसे निवेदन किया गया। चँकि यह ग्रन्थ मैने कई बार पूरा पढ़ा था अतः इस कार्य के संपादन में मुझे अधिक समय नहीं लगा और चारों भागों में से क्रमषः कुछ-कुछ कवित्त लेकर संक्षिप्त जैन रामायण का प्रकाषन सन् 2016 में हुआ। इस संक्षिप्त ग्रन्थ का एक ऑडियो कैसेट भी बना और इसकी संगीतमय प्रस्तुति गायक कलाकारों द्वारा स्व. डॉ. वीनू नायक की प्रथम बरसी पर हुई। उपस्थित जैन/ जैनेतर समुदाय ने इस ग्रन्थ एवं इसकी प्रस्तुति की भूरि-भूरि प्रसंषा की और डॉ. मंगल नायक से निवेदन किया कि इस पूर्ण ग्रन्थ का पुर्नप्रकाषन एवं प्रचार-प्रसार करंे।
प्रकृति के नियमों पर हमारा वष नहीं है। आज डॉ. मंगल नायक हमारे मध्य नहीं है। परंतु उनका परिवार उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुये यह ग्रन्थ पुनः प्रकाषित कर रहा है।
इस ग्रन्थ के विषय में हाल ही में जनवरी 2020 में जबलपुर में आयोजित विष्व रामायण सम्मेलन में मैने चर्चा की थी जब मैने सम्मेलन में ‘‘श्रमण परम्परा में राम और रामायण’’ विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया था। 30 देषों से उपस्थित
राम भक्तों को यह जानकर सुखद आष्चर्य हुआ कि संस्कारधानी जबलपुर में विष्व की एक मात्र बुंदेली भाषा में पद्य में रची सरल जैन रामायण की रचना सन 1950 के आसपास हुई और आज भी यह दुर्लभ ग्रन्थ उपलब्ध है और जैन समाज के लोग इसका दैनिक स्वाध्याय करते हैं। मैं डॉ. डैनी एवं डॉ. स्वराज नायक एवं समस्त नायक परिवार का ऋणी हूं कि मुझे इस ग्रन्थ से जुड़ने और इसके पुर्नप्रकाषन में सहायक होने का अवसर मिला।

धन्यवाद !
जयजिनेन्द्र,
जय श्री राम !
इंजीनियर कोमल चंद्र जैन